Thursday, December 1, 2011

facebook discussion: इंसान धर्म बदल सकता है, जाति क्यों नहीं?

बहुत साधारण से लगने वाले इस सवाल पर जवाब???

क्या हम सच में धर्म बदल सकते हैं?
इसका जवाब निर्भर करता है कि धर्म से हमारा क्या अभिप्राय है. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई... इत्यादि? या हमारी पौराणिक शिक्षा के आधार पर 'नियत कर्म'?

मेरा मानना है कि हमारा व्यक्तिगत धर्म, हमारा नियत कर्म जैसे हमारा पुत्र धर्म, पित्र धर्म, राज धर्म, मित्र धर्म, पति धर्म, पत्नी धर्म, भक्त धर्मं, इंसान धर्म..... इत्यादि वही रहते हैं चाहे हम किसी भी समुदाय, भाषा, देश या मत (हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, शैव, वैष्णव... इत्यादि) से सम्बन्ध रखते हों. हमारे धर्म निभाने के तरीके बदल सकते हैं उनमें कुछ कमी रह सकती है पर धर्म, शायद नहीं बदल सकता.
और जाती?
जाती क्या है और कहाँ तक है? गुर्जर भी मेरी जाती है, क्षत्रिय भी जाती है और इंसान भी मेरी जाती है. जाती का आधार क्या है? कर्म पर आधारित जाती कर्म बदलने पर बदल भी जाती है. एक पंडित परिवार में जन्मा बच्चा अगर फौज में भरती होता है और पूरी तरह से फौज के रीती, रिवाज़, चाल चलन, रहन सहन अपना लेता है तो क्या वह फिर भी पंडित रह जाता है...या क्षत्रिय बन जाता है? ये अपने आप में एक चर्चा का विषय है.
30 November 2011

No comments:

Post a Comment