मोक्ष का मतलब है छुटकारा, मुक्ति. इस जीवन चक्र से, जन्म और मृत्यु के फेरों से. जन्म और मृत्यु का ये सिलसिला अगर reality है तो फिर मोक्ष भी reality है.
18 March 2012
वैसे भाई भी अपनी जगह सही हैं कि इसे समझना इतना आसान नहीं है लेकिन फिर भी इक शुरुआत तो करनी ही होगी. चलिए यहीं से इस concept को समझने की इक शुरुआत करते हैं.
18 March 2012
भाई काफी हद तक सही हैं कि ब्राह्मणों ने वेदों के अच्छे उपदेशों को दूसरों तक जाने से रोका. असल में उन्होंने वेदों से अलग स्मृतियों और पुराणों के नाम से रचनाएँ लिखीं और उन्हें ही सच्चा ज्ञान कह कर लोगों को बरगलाना शुरू किया.
और दुर्भाग्यवश वे सफल भी हुए.
लेकिन मोक्ष, सिद्धि, renunciation, the highest perfect stage वगैरह के concept श्रीमद भगवद्गीता में भी हैं. ब्राह्मणों ने इन्हें बाद में गलत interpret किया और इन्हें प्राप्त करने के गलत तरीकों का प्रसार किया. स्मृतियों और पुराणों से हट कर अगर हम देखें तो बहुत कुछ सही जानकारी मिलती है.
25 March 2012
अगर हम आध्यात्मिक खोज को इक पढाई की तरह लें तो मोक्ष कह सकते हैं कि अध्यात्म की PhD है. अध्यात्म की पढाई का आखरी पड़ाव है. और इसी उपमा में कई और जवाब भी छिपे हैं. हम सब इस पढाई की अलग अलग स्टेज पर हैं. पहली दूसरी यानि प्रार्थमिक शिक्षा, माध्
यमिक, उच्चतर, graduation, post-graduation, PhD वगैरह वगैरह. और यही वजह है की मोक्ष की हमारी परिभाषा और समझ भी अलग अलग होती है. और हमारे जवाब भी अलग होते हैं. मसलन अब अगर भाई Dr से कोई पूछे PhD के बारे में तो उनका जवाब पहली कक्षा के बच्चे के लिए अलग होगा और छठी कक्षा के लिए अलग और इक graduation कर रहे छात्र के लिए अलग. सबके लिए इक जवाब नहीं हो सकता. ना ही सबको इक जैसा समझ आएगा.
वही बात मोक्ष के बारे में है. आध्यात्मिक अध्ययन के अपने स्तर के अनुरूप ही हम इस बात को समझ सकते हैं. हम में से अधिकतर प्रार्थमिक शिक्षा के स्तर पर हैं. कुछ माध्यमिक और उससे ऊपर तो विरले ही होंगे. और ऐसे में अगर कोई कहता है कि मैं मोक्ष नहीं चाहता तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है. पहली दूसरी कक्षा का विरला ही छात्र ये कह सकता है कि वो PhD करना चाहता है. अधिकतर तो PhD के विषय में उस वक्त कुछ नहीं कह सकते. और वैसे भी आपने अक्सर कईयों को कहते सुना होगा, बल्कि खुद भी कहा होगा कि बचपन कितना अच्छा था, हम बड़े नहीं होना चाहते.... हम भी अगर बच्चे होते..... यही बात अध्यात्म और मोक्ष की है. कहने को तो मोक्ष जीवन मरण के चक्कर से छुटकारा है पर पूरी तरह से इसे समझने के लिए पहले हमें अध्यात्म की प्रार्थमिक शिक्षा पूरी करनी होगी फिर माध्यमिक और फिर आगे. तभी हम इसे पूरी तरह समझ पायेंगे. और ये पोस्ट इस दिशा में इक अच्छा प्रयास है.
26 March 2012
18 March 2012
वैसे भाई भी अपनी जगह सही हैं कि इसे समझना इतना आसान नहीं है लेकिन फिर भी इक शुरुआत तो करनी ही होगी. चलिए यहीं से इस concept को समझने की इक शुरुआत करते हैं.
18 March 2012
भाई काफी हद तक सही हैं कि ब्राह्मणों ने वेदों के अच्छे उपदेशों को दूसरों तक जाने से रोका. असल में उन्होंने वेदों से अलग स्मृतियों और पुराणों के नाम से रचनाएँ लिखीं और उन्हें ही सच्चा ज्ञान कह कर लोगों को बरगलाना शुरू किया.
और दुर्भाग्यवश वे सफल भी हुए.
लेकिन मोक्ष, सिद्धि, renunciation, the highest perfect stage वगैरह के concept श्रीमद भगवद्गीता में भी हैं. ब्राह्मणों ने इन्हें बाद में गलत interpret किया और इन्हें प्राप्त करने के गलत तरीकों का प्रसार किया. स्मृतियों और पुराणों से हट कर अगर हम देखें तो बहुत कुछ सही जानकारी मिलती है.
25 March 2012
अगर हम आध्यात्मिक खोज को इक पढाई की तरह लें तो मोक्ष कह सकते हैं कि अध्यात्म की PhD है. अध्यात्म की पढाई का आखरी पड़ाव है. और इसी उपमा में कई और जवाब भी छिपे हैं. हम सब इस पढाई की अलग अलग स्टेज पर हैं. पहली दूसरी यानि प्रार्थमिक शिक्षा, माध्
यमिक, उच्चतर, graduation, post-graduation, PhD वगैरह वगैरह. और यही वजह है की मोक्ष की हमारी परिभाषा और समझ भी अलग अलग होती है. और हमारे जवाब भी अलग होते हैं. मसलन अब अगर भाई Dr से कोई पूछे PhD के बारे में तो उनका जवाब पहली कक्षा के बच्चे के लिए अलग होगा और छठी कक्षा के लिए अलग और इक graduation कर रहे छात्र के लिए अलग. सबके लिए इक जवाब नहीं हो सकता. ना ही सबको इक जैसा समझ आएगा.
वही बात मोक्ष के बारे में है. आध्यात्मिक अध्ययन के अपने स्तर के अनुरूप ही हम इस बात को समझ सकते हैं. हम में से अधिकतर प्रार्थमिक शिक्षा के स्तर पर हैं. कुछ माध्यमिक और उससे ऊपर तो विरले ही होंगे. और ऐसे में अगर कोई कहता है कि मैं मोक्ष नहीं चाहता तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है. पहली दूसरी कक्षा का विरला ही छात्र ये कह सकता है कि वो PhD करना चाहता है. अधिकतर तो PhD के विषय में उस वक्त कुछ नहीं कह सकते. और वैसे भी आपने अक्सर कईयों को कहते सुना होगा, बल्कि खुद भी कहा होगा कि बचपन कितना अच्छा था, हम बड़े नहीं होना चाहते.... हम भी अगर बच्चे होते..... यही बात अध्यात्म और मोक्ष की है. कहने को तो मोक्ष जीवन मरण के चक्कर से छुटकारा है पर पूरी तरह से इसे समझने के लिए पहले हमें अध्यात्म की प्रार्थमिक शिक्षा पूरी करनी होगी फिर माध्यमिक और फिर आगे. तभी हम इसे पूरी तरह समझ पायेंगे. और ये पोस्ट इस दिशा में इक अच्छा प्रयास है.
26 March 2012
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