मेरे विचार से किसी भी चीज़ में, व्यक्ति में, वस्तु में विश्वास रखना, भरोसा रखना भक्ति है. इसका पालन हम जिंदगी में सामान्य रहते हुए भी कर सकते हैं.
उपासना एक तरीका है जिसमे भक्ति है, श्रद्धा है उसके और समीप जाने का. उपासना प्रतिदिन कुछ समय के लिए हो सकती है. इसमें अपने आराध्य का ध्यान कर उसके और समीप जाने का प्रयास होता है. भक्ति और उपासना में फर्क ये है कि भक्ति में प्रेम है, समर्पण है, लगन है किन्तु कोई चाह नहीं है जबकि उपासना में अपने प्रिय को पाने कि चाह लेकर एक क्रिया करना है. भक्ति एक भाव है उपासना एक क्रिया है.
और तपस्या अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए किया गया अथक प्रयास है. इसमें निरंतरता व कुछ शारीरिक श्रम, कष्ट निहित है. ये मात्र एक सिमित समय के लिए अपनी इच्छा पूरी होने तक के लिए किया गया एक अथक परिश्रम, एक प्रयास है. वो उद्देश्य पूरा होने पर या वो इच्छा पूरी होने पर तपस्या पूर्ण हो जाती है तथा और तपस्या की जरूरत नहीं रह जाती. ये किसी अच्छी भावना से भी हो सकती है और बुरी भावना से भी.
इन तीनों से मैं यही समझता हूँ.
उपासना एक तरीका है जिसमे भक्ति है, श्रद्धा है उसके और समीप जाने का. उपासना प्रतिदिन कुछ समय के लिए हो सकती है. इसमें अपने आराध्य का ध्यान कर उसके और समीप जाने का प्रयास होता है. भक्ति और उपासना में फर्क ये है कि भक्ति में प्रेम है, समर्पण है, लगन है किन्तु कोई चाह नहीं है जबकि उपासना में अपने प्रिय को पाने कि चाह लेकर एक क्रिया करना है. भक्ति एक भाव है उपासना एक क्रिया है.
और तपस्या अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए किया गया अथक प्रयास है. इसमें निरंतरता व कुछ शारीरिक श्रम, कष्ट निहित है. ये मात्र एक सिमित समय के लिए अपनी इच्छा पूरी होने तक के लिए किया गया एक अथक परिश्रम, एक प्रयास है. वो उद्देश्य पूरा होने पर या वो इच्छा पूरी होने पर तपस्या पूर्ण हो जाती है तथा और तपस्या की जरूरत नहीं रह जाती. ये किसी अच्छी भावना से भी हो सकती है और बुरी भावना से भी.
इन तीनों से मैं यही समझता हूँ.
24 April 2012